बांग्लादेश में संविधान सुधार: राज्य सिद्धांतों और संसदीय ढांचे में बड़े बदलाव का प्रस्ताव

बांग्लादेश में संविधान सुधार आयोग की ओर से कई सिद्धांतों को बदलने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. इस प्रस्ताव के मुताबिक, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद के राज्य सिद्धांतों को बदलने की बात कही गई है. देश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को संविधान सुधार आयोग की तरफ से अपनी रिपोर्ट सौंपी गई.छात्रों के नेतृत्व में हुए बांग्लादेश में राष्ट्रव्यापी आंदोलन के कारण शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद छोड़ने के बाद अंतरिम सरकार की ओर से गठित आयोग ने देश के लिए दो सदन वाली संसद और प्रधानमंत्री के कार्यकाल को दो अवधि तक सीमित करने के प्रस्ताव को शामिल किया था. बांग्लादेश के संविधान में ये तीन सिद्धांत देश के संविधान में राज्य नीति में शामिल हैं. ये राज्यनीति के मूलभूत सिद्धांतों के रूप में स्थापित चार सिद्धांतों में से एक हैं. संविधान सुधार आयोग में नए प्रस्तावों के मुताबिक, सिर्फ लोकतंत्र शब्द में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है.

लोगों की इच्छाओं के लिए कर रहे बदलाव

आयोग के अध्यक्ष अली रियाज ने बताया कि हम 1971 के मुक्ति संग्राम के महान आदर्शों पर काम करना चाहते हैं. साथ ही 2024 में लोगों ओर से किए गए आंदोलन के दौरान उनकी आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए पांच राज्य सिद्धांतों- समानता, मानव गरिमा, सामाजिक न्याय, बहुलवाद के लिए प्रस्ताव भेजा है.मुख्य सलाहकार रियाज ने मीडिया को दिए बयान में कहा कि आयोग ने दो सदन के संसद के गठन की सिफारिश की है जिसमें निम्न सदन को नेशनल असेंबली और उच्च सदन को सीनेट नाम दिया जाएगा. इसमें 105 और 400 सीटें होंगी.

साथ ही भेजे गए प्रस्ताव में सुझाव दिया गया है कि प्रस्तावित दोनों सदनों का कार्यकाल संसद के मौजूदा पांच साल के कार्यकाल के बजाय चार साल का होगा. निचला सदन बहुमत के आधार पर और ऊपरी सदन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर तय किया जाना चाहिए.

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