महाकुंभ मेले में सबसे पहले नागा साधु शाही स्नान करते हैं, क्योंकि ये साधु विशेष रूप से तपस्वी और संन्यासी होते हैं, जो समाज से अलग होकर आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए कठोर साधना करते हैं। नागा साधुओं की विशेषता यह है कि वे अपनी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ गंगा, यमुना और संगम के पवित्र जल में स्नान करते हैं।नागा साधुओं का यह स्नान एक प्रकार से सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा है। वे इस स्नान को एक दिव्य कार्य मानते हैं, जो उनके तप और साधना को शुद्ध करता है। इसके अलावा, यह दिखाता है कि वे समाज में धर्म और धार्मिकता के प्रतीक माने जाते हैं। महाकुंभ में पहले स्नान करने का यह रिवाज उनके अद्वितीय और विशिष्ट स्थान को दर्शाता है।यह परंपरा उनके द्वारा किए गए कठिन साधना और त्याग की भी पहचान है, जो अन्य साधुओं और भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है।
अंग्रेजों के शासन के बाद निकला हल
इसके बाद भी हरिद्वार और प्रयाग में पहले स्नान को लेकर विवाद जारी रहा. कुंभ पर अंग्रेजों के शासन के बाद तय किया गया कि पहले शैव नागा साधु स्नान करेंगे, उसके बाद वैरागी स्नान करेंगे. इतना ही नहीं, शैव अखाड़े आपस में ना लड़ें, इसलिए अखाड़ों की सीक्वेंसिंग भी तय की गई. तब से लेकर आज तक यही परंपरा चल रही है.
क्यों करते हैं पहले नागा स्नान?
वहीं, धार्मिक मान्यताओं की मानें तो जब देवता और असुर समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की रक्षा के लिए एक-दूसरे से संघर्ष कर रहे थे, तो अमृत की 4 बूंदे कुंभ के 4 जगहों (प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नाशिक) पर गिर गई. इसके बाद यहां महाकुंभ मेले की शुरुआत की गई. नागा साधु भोले बाबा के अनुयायी माने जाते हैं और वह भोले शंकर की तपस्या और साधना की वजह से इस स्नान को नागा साधु सबसे पहले करने के अधिकारी माने गए. तभी से यह परंपरा चली आ रही कि अमृत स्नान पर सबसे पहला हक नागा साधुओं का ही रहता है. नागा का स्नान धर्म और आध्यत्मिक ऊर्जा की केंद्र माना जाता है.
एक अलग मान्यता के मुताबिक, ऐसा भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की टोली बनाई, तो अन्य संतों ने आगे आकर धर्म की रक्षा करने वाले नागा साधुओं को पहले स्नान करने को आमंत्रित किया. चूंकि नागा भोले शंकर के उपासक है, इस कारण भी इन्हें पहले हक दिया गया. तब से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है.
‘संस्कृति का महाकुम्भ’
14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई थी. दस देशों का 21 सदस्यीय दल संगम में स्नान करने के लिए पहुंचा. इससे पहले विदेशी दल ने रात्रि में अखाड़ों के संतो के दर्शन भी किए. महाकुम्भ में 16 जनवरी से 24 फरवरी तक ‘संस्कृति का महाकुम्भ’ होगा. मुख्य मंच गंगा पंडाल का होगा, जिसमें देश के नामचीन कलाकार भारतीय संस्कृति का प्रवाह करेंगे.