ब्रज में मतदाताओं का मिजाज ही अनोखा, जो पसंद आ गया… उसे बार-बार भेजा संसद; बनाए रखा बादशाह

उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में एक बार चुने जाने के बाद जो सांसद लगातार लोगों के बीच सक्रिय रहे उन्हें मतदाताओं ने भी कई बार चुना और संसद भेजा। ब्रज की पट्टी पर मतदाताओं का मिजाज ही कुछ ऐसा है जिसे एक बार पसंद तो फिर बार-बार चुना।कभी प्रत्याशी के इरादे पसंद आए तो कभी सियासी दल के वादे पसंद आए। अतीत के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि दलीय लहर और बदलाव की हवा भी ब्रज क्षेत्र में चुनाव पर असर डालती रही है।

आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा और मथुरा सीट पर एक ही प्रत्याशी बार-बार चुनाव जीतते रहे हैं। बार-बार एक दल को मतदाता वोट देते रहे हैं। आगरा लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां से 1952 से लेकर 1971 तक लगातार कांग्रेस के सेठ अचल सिंह एमपी बने। लगातार पांच चुनाव में कांग्रेस का आगरा सीट पर कब्जा रहा।

1977 में जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस को यहां से हार मिली और जनता पार्टी के शंभूनाथ चतुर्वेदी सांसद चुने गए। इसके बाद फिर कांग्रेस को ही मौका मिला। 1980 और 84 के चुनाव में कांग्रेस के निहाल सिंह सांसद चुने गए। 1991 से 1998 तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा। लगातार तीन बार भगवान शंकर रावत यहां से सांसद बने। 1999 ओर 2004 में सपा के राज बब्बर आगरा की पसंद बने। 2009 से 2019 तक फिर आगरा की पसंद भाजपा रही। रामशंकर कठेरिया और प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल एमपी चुने गए। आगरा सीट पर सात बार कांग्रेस का एमपी रहा है। छह बार भाजपा का कब्जा रहा है। यानी आगरा ने एक बार जिस दल और चेहरे पर भरोसा किया उसे बार-बार चुना।

कान्हा की नगरी में पांच चुनाव जीती कांग्रेस

मथुरा तो ब्रज का प्राण है। यहां शुरू से राधे-राधे का ही बोलबाला है। मथुरा के मतदाताओं ने एक बार जिस पर भरोसा किया उस पर बार-बार भरोसा कर संसद भेजा। यही वजह है कि कान्हा की नगरी से कांग्रेस पांच बार चुनाव जीती है।

1962 से 71 तक और 1984 में मथुरा में कांग्रेस चुनाव जीती। 1991 से 1999 तक लगातार भाजपा का कब्जा रहा। मानवेंद्र सिंह और तेजवीर सिंह पर मथुरा ने बार-बार भरोसा किया। दोनों तीन-तीन बार सांसद चुने गए। 2014 और 2019 में मथुरा ने हेमामालिनी को लगातार जिताया। इस बार फिर वे मैदान में हैं।

मैनपुरी में बार-बार मुलायम पर ही भरोसा

मैनपुरी तो सपा का गढ़ है। 1996 से 2019 तक लगातार यह सीट सपा जीत रही है। यूं कहें मुलायम के परिवार का ही कब्जा है। वैसे 1989 और 1991 में मुलायम सिंह यादव के गुरु उदय प्रताप सिंह लगातार दो बार यहां से सांसद चुने गए थे। तब सपा का गठन नहीं हुआ था लेकिन जनता दल और जनता पार्टी से उदय प्रताप सिंह को मुलायम ने ही चुनाव लड़ाया था। इस लिए माना जा सकता है कि कि सपा लगातार 12 चुनाव जीती है। पांच चुनाव यहां कांग्रेस जीती है। बादशाह गुप्ता दो बार सांसद चुने गए थे।

महादीपक शाक्य को नहीं छोड़ पाए एटा के लोग

एटा के वोटरों ने भी एक उम्मीदवार पर बार-बार भरोसा किया। महादीपक शाक्य को पांच बार सांसद चुना। वह 1977 में जनता पार्टी उसके बाद 1989 से 1998 तक लगातार भाजपा से सांसद चुने गए। 2014 से अब तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। कल्याण सिंह को भाजपा से बगावत के बाद भी 2009 में एटा के लोगों ने जनक्रांति पार्टी से चुना। चार चुनाव यहां से कांग्रेस ने जीते हैं। सपा से कुंवर देवेंद्र सिंह लगातार दो बार सांसद चुने गए।

फिरोजाबाद में सुमन और कठेरिया को बार-बार जिताया

चूड़ियों के शहर फिरोजाबाद सीट पर भी मतदाताओं में एक उम्मीदवार को बार-बार जिताया। पांच बार यहां से रामजीलाल सुमन को सांसद चुना। कांग्रेस तीन बार ही यहां से जीत सकी। सपा चार बार जीती है। भाजपा ने भी चार चुनाव जीते हैं। भाजपा पर यहां के लोगों ने भरोसा किया किया तो 1991, 96, 98 में लगातार तीन बार प्रभु दयाल कठेरिया को एमपी बनाया।

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