सिजोफ्रेनिया मनोविदलता: जागरूकता और सहारा में सुधार का माध्यम

भास्कर न्यूज़ उत्तर प्रदेश उत्तराखंड

मुज़फ्फरनगर। चिकित्सको द्वारा सिजोफ्रेनिया मनोविदलता दिवस के अवसर पर जनमानस को इस रोग के बारे मे विस्तृत जानकारी दी गयी,बेवजह शक, साजिश और भ्रम करना हो सकती है,यह मानसिक बीमारी चिकित्सको द्वारा सिजोफ्रेनिया मनोविदलता दिवस के अवसर पर जनमानस को इस रोग के बारे मे विस्तृत जानकारी दी गयी। वर्तमान में इस बीमारी से पीडि़त मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इस बीमारी को लेकर समाज में कई भ्रांतिया हैं लेकिन अपनों का साथ और स्नेह मिले तो मरीज में काफी हद तक सुधार हो सकता है। हर साल सिजोफ्रेनिया 24 मई को मनाया जाता है। यह एक गंभीर मानसिक बीमारी है। जिससे बचाव संभव है। उक्त बातें डॉ. अर्पण जैन ने कही।

जिला अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ.अर्पण जैन ने बताया कि सिजोफ्रेनिया मनोविदलता इस मानसिक बीमारी के लक्षण आमतौर पर किशोरवस्था और 20 साल की उम्र में दिखाई देते है। दोस्तों और परिवार से खुद को अलग कर लेना, किसी चीज पर फोकस ना कर पाना और चिड़चिड़ापन इसके प्रमुख लक्षण है। मरीज एक काल्पनिक दुनिया में रहने लगता है। जिंदगी से इतनी दिलचस्पी खत्म हो जाती है। जिला महिला चिकित्सालय के मन कक्ष में सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को मानसिक रोग ओपीडी में ऐसे मरीजों का निशुल्क इलाज किया जाता है। साईकोथेरेपिस्ट‌ मनोज कुमार ने बताया कि महिलाओं में 15 से 30 साल की उम्र में इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं। वहीं पुरुषों में 20 से 40 साल की उम्र में इसके लक्षण सामने आने लगते हैं। लेकिन जागरूकता की कमी से मरीज को अस्पताल तक आने में देरी होती है। जिससे वह धीरे-धीरे इस बीमारी का असर बढ़ जाता है। सिजोफ्रेनिया एक असाध्य बीमारी है। समाज में अंधविश्वास है कि इसके मरीज दोहरे व्यक्तित्व के होते हैं जबकि यह सच नहीं होता। उन्होंने बताया कि मस्तिष्क में कुछ रसायनों के असंतुलन के कारण मरीज की सोच, भावना और उनकी गतिविधियों में फर्क देखने को मिलता है। दवाओं से बीमारी नियंत्रण में आ सकती हैं। इस बीमारी का समय पर इलाज मिलने पर ही ये दवाएं असरकारक हो सकती हैं। देरी से इलाज पर दवा का असर कम होता है। जिससे व्यक्ति के अंदर संदेह के विचार आना शुरू हो जाते हैं। उनका दिमाग कहीं न कहीं दूसरे व्यक्ति पर संदेह करने लगता है। फिजिकॉलोजिस्ट डॉ. अंशिका मलिक ने बताया कि जानकारी के अभाव में आमतौर पर लोग इस बीमारी की चपेट में आने वाले युवाओं का सही इलाज नहीं करवा पाते है। ऐसी स्थिति में मरीज को इलाज के लिए जिला महिला चिकित्सालय के मन कक्ष (कमरा नंबर 6) में ले आएं। जिससे पीडि़त व्यक्ति का बेहतर इलाज हो सके।संवाद के सुझाव आसान भाषा में धीरे-धीरे और स्पष्ट रुप से बोले, ताकि सकारात्मक व उत्साहजनक हो,आलोचना करने से बचें और बहस ना करें।

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